भोपाल: आज भी हमारे आसपास कुछ लोग ऐसे हैं, जो दोस्ती की मिसाल बने हैं। उनकी दोस्ती के फसाने दुनिया दोहराती है। दूरियां भी उन्हें जुदा नहीं कर पातीं। दोस्ती जिंदादिली का नाम है। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसे दिल से जिया जाता है। ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के भोपाल जिले का सामने आया है। जहां ट्रेन की चपेट में आने से अपने दोनों पैर गंवा चुका इंजीनियरिंग के छात्र को हौंसला उसके कॉलेज के दोस्त दे रहे हैं।
जानकारी के अनुसार दिलीप पिछले साल बिहार के बेगूसराय जिला स्थित पहाड़पुर में अपनी बहन से मिलने ट्रेन से जा रहा था। तभी रात 9.30 बजे ट्रेन लखमनिया स्टेशन पर रुकी, लेकिन लाइट न होने की वजह से दिलीप को कुछ देर समझ नहीं आया कि यह कौन सा स्टेशन है। जब समझ पाया और उसने उतरने की कोशिश की, तब तक ट्रेन चलनी शुरू हो गई। वह गिरकर ट्रेन की चपेट में आ गया, जिससे उसके दोनों पैर कट गए।
गरीबी की हालत के कारण दिलीप के मां-बाप ने जैसे-तैसे 3 लाख रुपए का प्रबंध किया और उसका इलाज करवाया। दिलीप के इलाज के बाद उसके मां-बाप कर्ज में डूब गए। उन्होंने सोचा कि वे अब बेटे को आगे नहीं पढ़ा पाएंगे, लेकिन दिलीप के दोस्तों ने उन्हें भरोसा दिलाया और अपने दोस्त की अधूरी पढ़ाई पूरी करवाने के लिए उसे पटना से भोपाल ले आए। दिलीप के दोस्तों ने उसे अपने घर में रखा और कॉलेज ले जाने के लिए उसे गोद में उठाकर ले जाते हैं।
बताया जा रहा है कि दिलीप के पैरों के इलाज के लिए इंटरनेट पर इसका समाधान तो मिल गया है, लेकिन इसमें करीब 9 लाख रुपए का खर्च आएगा, जो उसके पास कहां से आएगा। क्योंकि दिलीप के पिता पेंटर हैं और मां खेत में मजदूरी करती हैं, ऐसे में उसके लिए इतना पैसा जुटाना असंभव है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण दिलीप करीब 2 लाख रुपए कॉलेज की फीस भी जमा नहीं कर पा रहा है।
इस बात पर दिलीप के दोस्तों का कहना है कि अगर प्रशासन चाहे तो वे उसके साथ मिलकर कैम्पेन चला सकते हैं। वे लोगों से अपील करेंगे कि एक दिन आप चाय और धूम्रपान छोड़कर उससे बचने वाला पैसा दिलीप के लिए दान दें। वह पैसा दिलीप को कॉलेज की फीस भरने और उसके कृत्रिम पैर लगवाने में काम आएगा। इससे उसको काफी मदद मिलेगी।
जानकारी के अनुसार दिलीप पिछले साल बिहार के बेगूसराय जिला स्थित पहाड़पुर में अपनी बहन से मिलने ट्रेन से जा रहा था। तभी रात 9.30 बजे ट्रेन लखमनिया स्टेशन पर रुकी, लेकिन लाइट न होने की वजह से दिलीप को कुछ देर समझ नहीं आया कि यह कौन सा स्टेशन है। जब समझ पाया और उसने उतरने की कोशिश की, तब तक ट्रेन चलनी शुरू हो गई। वह गिरकर ट्रेन की चपेट में आ गया, जिससे उसके दोनों पैर कट गए।
गरीबी की हालत के कारण दिलीप के मां-बाप ने जैसे-तैसे 3 लाख रुपए का प्रबंध किया और उसका इलाज करवाया। दिलीप के इलाज के बाद उसके मां-बाप कर्ज में डूब गए। उन्होंने सोचा कि वे अब बेटे को आगे नहीं पढ़ा पाएंगे, लेकिन दिलीप के दोस्तों ने उन्हें भरोसा दिलाया और अपने दोस्त की अधूरी पढ़ाई पूरी करवाने के लिए उसे पटना से भोपाल ले आए। दिलीप के दोस्तों ने उसे अपने घर में रखा और कॉलेज ले जाने के लिए उसे गोद में उठाकर ले जाते हैं।
बताया जा रहा है कि दिलीप के पैरों के इलाज के लिए इंटरनेट पर इसका समाधान तो मिल गया है, लेकिन इसमें करीब 9 लाख रुपए का खर्च आएगा, जो उसके पास कहां से आएगा। क्योंकि दिलीप के पिता पेंटर हैं और मां खेत में मजदूरी करती हैं, ऐसे में उसके लिए इतना पैसा जुटाना असंभव है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण दिलीप करीब 2 लाख रुपए कॉलेज की फीस भी जमा नहीं कर पा रहा है।
इस बात पर दिलीप के दोस्तों का कहना है कि अगर प्रशासन चाहे तो वे उसके साथ मिलकर कैम्पेन चला सकते हैं। वे लोगों से अपील करेंगे कि एक दिन आप चाय और धूम्रपान छोड़कर उससे बचने वाला पैसा दिलीप के लिए दान दें। वह पैसा दिलीप को कॉलेज की फीस भरने और उसके कृत्रिम पैर लगवाने में काम आएगा। इससे उसको काफी मदद मिलेगी।

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