Monday, 23 June 2014

बच्ची ने गूगल को लिखी मासूम चिट्ठी, गूगल ने दिया जवाब

गूगल मानवीय चीजों को लेकर अपनी संवेदनशीलता के लिए काफी प्रसिद्ध है। एक बच्ची ने गूगल को बेहद मासूम चिट्ठी लिखी और एक मांग की। गूगल से बच्ची को बदले में चिट्ठी तो मिली ही, मांग से भी कुछ ज्यादा ही मिला।

छोटी बच्ची केटी के पिता गूगल में काम करते हैं। बच्ची ने अपने पिता के जन्मदिन पर उनके लिए एक दिन की छुट्टी की मांग करते हुए खुद चिट्ठी लिखी। गूगल ने भी बच्ची को चिट्ठी लिखकर पिता के काम की तारीफ की और पूरे एक हफ्ते की छुट्टी दे दी।

डियर केटी,

आपकी प्रेममय चिट्ठी और निवेदन के लिए शुक्रिया।

आपके पिता डिज़ाइनिंग के काम में मेहनत करते हुए पूरी दुनिया के लाखों-करोड़ों लोगों और गूगल के लिए खूबसूरत चीजें बना रहे हैं।

उनके जन्मदिन के मौके पर और गर्मियों में कुछ बुधवारों की छुट्टियों के महत्व को ध्यान में रखते हुए हम उन्हें जुलाई के पूरे पहले हफ्ते छुट्टी दे रहे हैं।

Thursday, 19 June 2014

जब दोस्तों ने कायम की मिसाल

भोपाल: आज भी हमारे आसपास कुछ लोग ऐसे हैं, जो दोस्ती की मिसाल बने हैं। उनकी दोस्ती के फसाने दुनिया दोहराती है। दूरियां भी उन्हें जुदा नहीं कर पातीं। दोस्ती जिंदादिली का नाम है। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसे दिल से जिया जाता है। ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के भोपाल जिले का सामने आया है। जहां ट्रेन की चपेट में आने से अपने दोनों पैर गंवा चुका इंजीनियरिंग के छात्र को हौंसला उसके कॉलेज के दोस्त दे रहे हैं।

जानकारी के अनुसार दिलीप पिछले साल बिहार के बेगूसराय जिला स्थित पहाड़पुर में अपनी बहन से मिलने ट्रेन से जा रहा था। तभी रात 9.30 बजे ट्रेन लखमनिया स्टेशन पर रुकी, लेकिन लाइट न होने की वजह से दिलीप को कुछ देर समझ नहीं आया कि यह कौन सा स्टेशन है। जब समझ पाया और उसने उतरने की कोशिश की, तब तक ट्रेन चलनी शुरू हो गई। वह गिरकर ट्रेन की चपेट में आ गया, जिससे उसके दोनों पैर कट गए। 

गरीबी की हालत के कारण दिलीप के मां-बाप ने जैसे-तैसे 3 लाख रुपए का प्रबंध किया और उसका इलाज करवाया। दिलीप के इलाज के बाद उसके मां-बाप कर्ज में डूब गए। उन्होंने सोचा कि वे अब बेटे को आगे नहीं पढ़ा पाएंगे, लेकिन दिलीप के दोस्तों ने उन्हें भरोसा दिलाया और अपने दोस्त की अधूरी पढ़ाई पूरी करवाने के लिए उसे पटना से भोपाल ले आए। दिलीप के दोस्तों ने उसे अपने घर में रखा और कॉलेज ले जाने के लिए उसे गोद में उठाकर ले जाते हैं। 

बताया जा रहा है कि दिलीप के पैरों के इलाज के लिए इंटरनेट पर इसका समाधान तो मिल गया है, लेकिन इसमें करीब 9 लाख रुपए का खर्च आएगा, जो उसके पास कहां से आएगा। क्योंकि दिलीप के पिता पेंटर हैं और मां खेत में मजदूरी करती हैं, ऐसे में उसके लिए इतना पैसा जुटाना असंभव है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण दिलीप करीब 2 लाख रुपए कॉलेज की फीस भी जमा नहीं कर पा रहा है। 

इस बात पर दिलीप के दोस्तों का कहना है कि अगर प्रशासन चाहे तो वे उसके साथ मिलकर कैम्पेन चला सकते हैं। वे लोगों से अपील करेंगे कि एक दिन आप चाय और धूम्रपान छोड़कर उससे बचने वाला पैसा दिलीप के लिए दान दें। वह पैसा दिलीप को कॉलेज की फीस भरने और उसके कृत्रिम पैर लगवाने में काम आएगा। इससे उसको काफी मदद मिलेगी।

Monday, 16 June 2014

उम्र महज 10 साल और बना डाले 276 क्ले मॉडल। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है नाम। जानिए कौन है ये...

झांसी. ''परिंदों को मंजिल मिलेंगी यकीनन, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं। वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर, जमाने में जिनके हुनर बोलते हैं।'' बेहद कम बोलने वाले अमीक खान पर ये लाइन बिल्कुल सटीक बैठती है। वह देश के पहले क्ले मॉडलर हैं। बॉलीवुड की कोरियोग्राफर फराह खान, सिंगर अन्नू मलिक, कॉमेडी की रानी भारती और कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी सहित कई मशहूर हस्तियां इनके हुनर के कायल हैं।
 
अमीक अपनी हुनर का जादू कई टीवी शो में भी दिखा चुके हैं। 9 जून, 2011 को इन्होंने सोनी टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले शो 'इंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा' में हिस्सा लिया था। उनकी प्रतिभा को देखकर इस शो के जज फराह खान और अन्नू मलिक हैरान रह गए थे। अमीक ने इस शो में खूब वाहवाही बटोरी थी। 
 
9वीं क्लास के छात्र अमीक क्ले मिट्टी से किसी भी तरह की आकृति महज चंद मिनटों में बनाने में माहिर हैं। महज 10 साल की उम्र में 276 क्ले मॉडल बनाने के लिए 2008 में उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है। इनके द्वारा बनाए गए कई क्ले मॉडल झांसी के राजकीय म्यूजियम में रखे गए हैं।
 
दादी की देन है अमीक का हुनर
 
जब अमीक दो साल के थे, तब उन्हें रोने से चुप कराने के लिए उनकी दादी अक्सर गीला आटा दे देती थीं। वह आटा पाकर शांत हो जाते थे और इससे खेल-खेल में आकृति बना देते। यह सिलसिला कई साल तक चला और उन्हें इसकी लत लग गई।
 
वह एक बार में दो-दो किलो आटा बर्बाद करने लगे। इससे परिजन परेशान हो गए। उन्हें अपने पड़ोसी से क्ले मिट्टी के बारे में पता चला। बस फिर क्या था क्ले मिट्टी हाथ लगते ही अमीक ने सफलता का ऐसा सफर शुरू किया, जो अब तक जारी है।

Sunday, 15 June 2014

सास ने संभाली रसोई तो बहू ने IAS बन दिया तोहफा, पढ़ें सफलता की कहानी

जोधपुर. शहर के तीन परिवारों ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि ससुराल वाले चाहें तो शादी के बाद बहू न केवल पढ़ाई जारी रख सकती है, बल्कि देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित सरकारी सेवा आईएएस में भी सलेक्ट हो सकती है। पिछले दो साल में इन तीनों परिवारों की तीन बहुएं आईएएस में चुनी गईं। इनमें से दो ने इस साल सफलता हासिल की। भास्कर ने तीनों से बात की तो उन्होंने इसका क्रेडिट पूरी तरह सास-ससुर और पति को दिया। साथ ही कहा कि सासु मां का मतलब होता है सास व मां दोनों साथ, इसलिए उनसे प्यार भी दुगना मिलता है। जब राशि का आईपीएस में चयन हुआ तो पूरा परिवार खुश था। 

सास-ससुर अलग-अलग रहे, ताकि बहू की पढ़ाई चलती रहे

पिछले बार सफलता हासिल करने वाली और फिलहाल उदयपुर में तैनात आईपीएस अधिकारी राशि डूडी बताती हैं- मेहमान आते थे तो उन्हें अटैंड करने तो आना ही पड़ता था, लेकिन सासुजी की नजर सिर्फ मुझ पर ही रहती थी। नमस्कार करने के बाद जब भी सासुजी की तरफ देखती तो कहती कि पढ़ाई कर लो। जब कभी रसोई में जाती तो उनकी मीठी डांट पड़ती कि यह काम तो मैं ही कर लूंगी, तुम पढ़ लो। ससुर बीएल डूडी की पोस्टिंग झारखंड में थी, हम उन्हें पापा के पास जाने के लिए कहते थे, लेकिन वे कहती थीं कि तुम्हारी पढ़ाई के लिए यहां रहना जरूरी है। राशि अपने पति अभिनव के साथ आईएएस की तैयारी करती थी। अभिनव का सलेक्शन इस वर्ष हुआ है। राशि के अनुसार उनकी गणित शुरू से कमजोर थी, लेकिन पति ने पूरे साल पढ़ाया। 

Saturday, 14 June 2014

'कराटे किड' के नाम से मशहूर हनी 10 साल की उम्र में बना इंटरनेशनल चैम्पियन

बहादुरगढ़. पूत के पांव पालने में ही पहचान में आ जाते हैं। बादली के हन्नी गुलिया ने इस कहावत को सार्थक कर दिखाया है।
 
डीआरए स्कूल गुभाणा माजरी में कक्षा पांच के छात्र हन्नी गुलिया ने मात्र 10 साल की उम्र में कराटे में न सिर्फ ब्लैक बेल्ट हासिल किया बल्कि इंटरनेशनल लेवल पर अपनी उम्र से ज्यादा मेडल, प्रमाण पत्र, सम्मान पत्र समेत अनेक उपलब्धियां अपने नाम की। 
 
कहते हैं प्रतिभा किसी के छुपाने से नहीं छुपती। ऐसी ही प्रतिभा के धनी हैं हन्नी। इलाके में कराटे का नाम आते ही सबसे कम उम्र के इस चैम्पियन का नाम जरूर आता है। वह आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इस कराटे खिलाड़ी ने केवल दो वर्ष में देश भर में नाम कमाया है। लोग अब हन्नी को 'कराटे किड' कहते हैं।
 
तीसरी क्लास से कराटे खेलना शुरू किया
 
हन्नी गुलिया ने तीसरी क्लास से ही कराटे खेलना शुरू कर दिया था। वह 25 किलोग्राम भार वर्ग में हिस्सा लेता है। जुलाई 2012 में रोहतक में इंटर डूजो कराटे प्रतियोगिता उनकी पहली स्पर्धा थी। पहले ही प्रयास में हन्नी ने सिल्वर मेडल जीता। इसके बार उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

Friday, 13 June 2014

अमेरिका को चुनौती देने ईरानी छात्रों ने बनाई सोलर ऊर्जा से चलने वाली कार

काजविन (ईरान)। अमेरिका की यात्रा करना ईरानी लोगों के लिए इतनी भी आसान नहीं है। 1979 के बाद से राजधानी तेहरान में अभी तक अमेरिकी दूतावास नहीं खोला गया है। लोगों को दुबई ओर तुर्की के रास्ते से अमेरिका की यात्रा करनी होती है। 
 
तेहरान में काजविन इस्लामिक यूनिवर्सिटी के छात्रों के एक समूह के  साथ भी यही समस्या हो गई है। वे अपनी एक कार अमेरिका भेजना चाहते हैं। हाविन-2 नामक यह कार कोई साधारण कार नहीं है। यह सोलर ऊर्जा से चलती है। 

इस कार की बॉडी के नीचे लगे चार पहियों से ही पता चलता है कि ये एक कार है। इसे इन छात्रों ने अमेरिकन सोलर चैलेंज के लिए तैयार किया है। जुलाई महीने में होने वाले इस चैलेंज के दौरान प्रतिभागी अपनी तैयार सौर ऊर्जा से चलने वाली गाड़ियों में अमेरिका के 7 राज्यों में 1700 मील लंबा रोड ट्रिप पूरा करेंगे।
 
हालांकि यह सुनने में दुखद लगे, लेकिन शायद हाविन 2 स्टार्ट लाइन तक भी नहीं पहुंच पाएगी। कार बनाने वाली टीम के मैकेनिकल लीडर मोहम्मद सादतमंद ने कहा कि हमें इस बात की चिंता है कि शायद हम अमेरिका भी न जा पाएं।

Thursday, 12 June 2014

महज 10 साल में हाईस्कूल डिप्‍लोमा

लॉस एंजलिस। महज दस साल की उम्र में हाईस्कूल का डिप्लोमा हासिल करना एक चमत्कार की तरह है। घर पर पढ़ने वाले भारतीय मूल के एक प्रतिभाशाली बालक ने अमेरिका में सबसे कम उम्र में ये कर दिखाया है।
कैलिफोर्निया के सैक्रामेंटो निवासी तनिष्क अब्राहम को रविवार को कैलिफोर्निया ऑटो म्यूजियम में आयोजित एक निजी समारोह में हाईस्कूल का डिप्लोमा प्रदान किया गया।
सात साल की उम्र से घर पर पढ़ने वाले अब्राहम ने मार्च में राज्य परीक्षा को उत्तीर्ण किया जिसमें प्रमाणित हुआ कि वह डिप्लोमा हासिल करने के लिए उपयुक्त शैक्षिक मानकों को पूरा करता है। राष्ट्रपति पद की महत्वाकांक्षा रखने वाले अब्राहम ने एबीसी न्यूज से कहा, "मैंने कड़ी मेहनत की और मैं बहुत खुश हूं कि मैंने अंततोगत्वा हाईस्कूल का डिप्लोमा हासिल कर लिया।" अब्राहम का कहना है कि उसे किंडरगार्टन में ही इस बात का एहसास हो गया था कि उसमें कुछ खास है।
अब्राहम ने कहा, "मैं तब दूसरी और तीसरी कक्षा की किताबों को पढ़ सकता था। मैं इन कक्षाओं की गणित के सवाल भी हल करने में सक्षम था।" प्रतिभाशाली बालक ने बताया, "मेरा अंतिम लक्ष्य विज्ञान होगा जैसे वैज्ञानिक या डॉक्टर बनना लेकिन राष्ट्रपति भी बनना चाहता हूं।" उसकी मां तेजी अब्राहम ने बताया कि वह अपनी कक्षा के स्तर से इतना आगे था कि उन्हें अपने बेटे के लिए होम स्कूल का फैसला लेना पड़ा।

दिनेश को नहीं भूलता पाकिस्तान जेल में हैवानियत का वह मंजर

बहरियाबाद, [गाजीपुर]। हमेशा हंसुमख रहने वाला दिनेश अब गुमसुम ही रहता है। उसकी मनोदशा सामान्य नहीं हो पाई है। पाकिस्तान स्थित कराची शहर के मलीर जेल में दो साल उस पर जो गुजरे उसे याद कर वह आज भी सिहर जाता है। कहता है कि जीवन भर नहीं भूल पाऊंगा वह हैवानियत का मंजर। जेल से आजाद होकर पंद्रह दिनों पहले अपनों के बीच पहुंच चुके दिनेश का स्वास्थ्य गिर रहा है। हाल यह है कि पिछले दो दिनों से वह बात करने की भी स्थिति में नहीं है। कुछ पूछने पर झुंझलाने लगता है। कुछ देर बाद वह लिख कर अपनी बात बताने को तैयार हुआ।
पैरवी न होने के कारण पाक जेल में ज्यादा समय गुजारना पड़ा
बुधवार को दिनेश से पाकिस्तान जेल में गुजरे दिनों के बारे में पूछा तो चेहरे का रंग बदल गया । शून्य में निहारती आंखें अतीत को वर्तमान से जोड़ने की कोशिश करने लगीं। काफी देर तक खामोश रहने के बाद दिनेश ने आपबीती को लिखकर बताना शुरू किया। बताया कि पांच मार्च 2012 को वह दिशा भ्रम के कारण पाकिस्तान की सीमा में दाखिल होते हुए खोखरापार गांव पहुंचा। उसकी बोलचाल से लोगों को शक हुआ। लोगों ने इसकी सूचना क्षेत्र की पुलिस चौकी को दी। सूचना पर पहुंचे एएसआइ नईम नादिर ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसी रात आठ बजकर 20 मिनट पर कराची के थाना छठियावार में दिनेश के बारे में लिखापढ़ी की गई। दस मार्च तक वहीं पुलिस कस्टडी में रखा गया। पांच दिनों के बाद 15 मार्च को कराची के जूडिशियल मजिस्ट्रेट (तृतीय) के सामने सीमा उल्लंघन के मामले में पेश किया गया। उसके खिलाफ गवाह बने पुलिस के अधिकारी अजहर खां, खालिद अयूब एवं इफ्तिखार हुसैन। अदालत में दिनेश ने स्वीकार किया कि वह भारतीय है। गलती से सीमा पार कर आ गया है। मजिस्ट्रेट ने सीमा उल्लंघन के मामले में एक वर्ष की सजा सुनाई। इसके बाद उसे मलीर जेल में भेज दिया गया। वहां सजा 14 मार्च 2013 को समाप्त हो गई लेकिन पैरवी न होने के कारण अधिक समय रहना पड़ा। इतना लिखने के बाद दिनेश का हाथ रुक जाता है। आंखों से आंसू बहने लगते हैं।
भारतीयों संग जालिमाना व्यवहार
जेल में सजा से पहले पुलिस वालों का रवैया काफी जालिमाना था। उसे हर उस यातना से गुजरना पड़ा जिसकी उम्मीद भी नहीं थी। हालांकि सजा सुनाने के बाद जेल में कम तकलीफें दी गई। जेल में अन्य भारतीय कैदियों की उठने वाली चीखें याद आने पर अब भी सोते से जागने को विवश कर देती है। एक बैरक में उसके साथ अन्य डेढ़ सौ भारतीय कैदियों को रखा गया था। बैरक में पंखा, लाइट एवं टीवी की व्यवस्था थी। उन्हें जिंदा रखने के लिए खुराक से काफी कम नाश्ता एवं खाना दिया जाता था। नाश्ते में एक रोटी, सब्जी के साथ उन्हें चाय मिलती। साथ ही खाने में दो रोटी और दाल। महीने में दो दिन मटन भी दिया जाता था। विशेष मौकों पर उपहार के तौर पर कपड़ा, मंजन, शैंपू वगैरह मिलता। वहां के बंदी रक्षकों को भोजपुरी जुबान से काफी चिढ़ थी। साथियों से बात करने पर मार खानी पड़ती थी।
छह माह पर आते थे उच्चायोग के अफसर
भारतीय बंदियों के जख्मों पर मरहम रखने के लिए भारतीय उच्चायोग के अधिकारी छह महीने में एक बार आते थे। कैदियों को रिहाई और हर मदद का वादा करते। उन्हीं की दिलासे के भरोसे इतना लंबा अरसा जेल में गुजर गया। फिलहाल दिनेश की हालत इस समय काफी खराब है उसे इलाज की सख्त जरूरत है। मालूम हो कि जून 2011 में दिनेश नौकरी करने के 

Wednesday, 11 June 2014

भानगढ़ एक अनसुलजी कहानी

किले का इतिहास यह किला अम्बेर के महान मुगल सेनापति,मान सिंह के बेटे माधो सिंह द्वारा 1613 में बनवाया गया था। राजा माधो सिंह अकबर की सेना के जनरल थे। ये किला जितना शानदार है उतना ही विशाल भी है, वर्तमान में ये किला एक खंडहर में तब्दील हो गया है। किले में प्राकृतिक झरने, जलप्रपात, उद्यान, हवेलियां और बरगद के पेड़ इस किले की गरिमा को और भी अधिक बढ़ाते हैं। साथ ही भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर धर्म की दृष्टि से भी इसे महत्त्वपूर्ण बनाते हैं।

किले के इतिहास को बयां करती एक खौफनाक कहानी
 भानगढ़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो बेहद खुबसुरत थी और उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी वो एक तांत्रिक की मौत का कारण बनी क्योंकि तांत्रिक राजकुमारी से विवाह करना चाहता था। राजकुमारी से विवाह न होने के कारण उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। मरने से पहले भानगढ़ को तांत्रिक से ये श्राप मिला क‍ि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी। उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच जंग हुई जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्‍नावती भी उस श्राप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। तब से लेकर आज तक इस किले में रूहों ने अपना डेरा जमा रखा है।

  भानगढ़ के बारे में एक अन्य मिथक
भानगढ़ के सम्बन्ध में एक अन्य कहानी ये भी है क‍ि यहाँ एक तपस्वी बाबा बालानाथ और राजा अजब सिंह के बीच किसी बात को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसे बाद में राजा ने नहीं माना और बाबा ने उसे श्राप दे दिया की इस किले में कोई भी जीवित नहीं रहेगा और जो यहां आयगा वो मार जायगा। तब से लेकर आज तक ये किला यूं ही वीरान पड़ा है और आज भी इसमें भूत हैं। लोगों का मानना है कि यही कारण था कि किले को इसके निर्माण के तुरन्त बाद ही छोड़ दिया गया था, और शहर प्रेतवाधित होने की वजह से सुनसान हो गया।

अब कौन करता है किले की हिफाज़त
 फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं।

वास्तुशास्त्री के अनुसार 

वास्तुशास्त्री ने देखा कि इस किले के अन्दर नैऋत्य कोण (दक्षिण पश्चिम कोण) नीची और नमी वाली है। दीवारों पर से पपड़ियां उतरी हुई हैं। नैऋत्य कोण के दक्षिण पश्चिम भाग बढ़े हुए हैं।
ईशान कोण (उत्तर पूर्व) में भी वास्तु दोष है इन दोषों के कारण ही भानगढ के किले में नकारात्मक उर्जा का प्रवाह हो रहा है। इससे भूत-प्रेत एवं भय की अनुभूति होती है।





Tuesday, 10 June 2014

12वीं पास के लिए 9500 सरकारी भर्तियां, जल्द करें आवेदन

 बेरोजगारी के इस आलम में जहां एमबीए और इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए नौकरी पाना मुश्किल हो रहा हैं वहीं 12वीं पास के लिए तो सरकारी नौकरी का ख्वाब देखना कैसे मुमकिन हो सकता है।

लेकिन अब 12वीं पास बेरोजगार युवाओं को तनाव लेने की जरूरत नही है क्योंकि उनके लिए बिहार कर्मचारी चयन आयोग ने बंपर भर्तियां निकाल दी हैं।

दरअसल बिहार कर्मचारी चयन आयोग ने बिहार सरकार के विभिन्न विभागों में कुल 9500 रिक्त पदों को भरने के लिए विज्ञप्ति जारी कर दी है। इन पदों को भरने के लिए योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मांगे गए हैं।

कुल पद- 9,500 

पद- रेवेन्यू क्लर्क के 4353 पद , एसआई के 165 पद, फॉरेस्ट गार्ड के 693 पद, पंचायत सचिव के 3161 पद, आशु सहायक अवर निरिक्षक के 87 पद व अन्य सभी पद टंकण की अलग-अलग भाषायों के लिए क्लर्क पदों पर है।

आयुसीमा- न्यूनतम आयु 18 वर्ष और अधिकतम आयु 37 वर्ष निर्धारित की गर्ई है। फॉरेस्ट गार्ड पदों के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए अधिकतम आयु 23 वर्ष रखी गई है।

आरक्षित वर्ग को आयु सीमा में नियमानुसार छूट दी गई है। आयु की गणना 1 सितंबर, 2013 से की जाएगी।

आवेदन शुल्क-
सामान्य वर्ग और ओबीसी के उम्मीदवारों के लिए 300 रूपये तथा आरक्षित वर्ग (एससी/एसटी) के लिए 75 रूपये आवेदन शुल्क रखा गया है। यह आवेदन शुल्क भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी शाखा में 19 जूलाइ, 2014 तक जमा कराया जा सकता है।

शैक्षिक योग्यता-
उम्मीदवार किसी भी मान्यताप्राप्त शिक्षा बोर्ड से 12वीं (इंटर) पास हो। क्लर्क के पद के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को कंप्युटर पर टाइपिंग का ज्ञान होना जरूरी है। 

तकनीकी शिक्षक के अभ्यर्थी के पास इंटर की योग्यता के साथ ही संबंधित ट्रेड में आईटीआई से सर्टीफिकेट प्राप्त की हो। कुछ पदों के लिए शैक्षिक योग्यता के साथ-साथ शारीरिक योग्यता भी अनिवार्य है। 

वेतनमान-
5,200-20,200 और पदानुसार ग्रेड पे (2800/2400/2000/1900) रूपये निर्धारित किया गया है।

आवेदन प्रक्रिया-
आवेदन केवल ऑनलाइन भरा जाएगा। इन पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन 16 जून, 2014 से 22 जुलाई, 2014 तक किया जा सकता है। e

बच्चों को तहखाने में कैद कर चूडियो पर जड़वा रहे थे नगीने

जोधपुर।सूना मकान, बाहर शटर, अंदर सिर्फ एक जगह कुछ पत्थर रखे थे। पत्थर हटाए तो तहखाने का संकरा-अंधेरा रास्ता। अंधेरे-बदबूदार तहखाने में लालटेन की रोशनी में सात बच्चे चूडियों पर नगीने जड़ रहे थे। उम्र 6 से 17 साल के बीच। सांस लेने के लिए छोटा सा छेद कर जाली लगाई हुई। 


यह सीन था प्रतापनगर में फैजा मस्जिद के सामने स्थित एक मकान का। चाइल्ड लाइन के कोर्डिनेटर दिनेश राज और उनके साथियों ने इन बच्चों को आजाद कराया। बाल कल्याण समिति के मजिस्ट्रेट के आदेश पर बच्चों को उप निरीक्षक सोमकरण ने बाल आश्रम भेज दिया।

तीन माह : बच्चे तीन माह पहले यहां लाए गए थे। उनके माता-पिता गांव ही हैं। उनसे प्रतिदिन 10 से 14 घंटे तक मजदूरी करवाई जाती थी। केस दर्ज : मकान मालिक बिटल अरोड़ा पर बच्चों से बंधुआ मजदूरी कराने तथा अमानवीय परिस्थितियों में रखने का मामला दर्ज किया है। 

ऎसे तलाशा


1गुप्त सूचना : गुप्त सूचना पर चाइल्ड लाइन ने पूरी जांच-पड़ताल की।
2 मकान खाली: शटर खोल मकान में घुसे तो वहां कुछ नहीं दिखा। 
3 आवाज सुनी : एक जगह पत्थर के नीचे से आ रही थी आवाज।
4नीचे तहखाना: पत्थर हटाए तो तहखाने का रास्ता मिला। 
5 काल कोठरी: नीचे लालटेन की जरा सी रोशनी में हो रहा था काम। -

Monday, 9 June 2014

होलीडे ने वीकेंड में 40 करोड़ रूपए कमाए

मुंबई। बॉलीवुड के खिलाड़ी कुमार अक्षय कुमार की फिल्म होलीडे-ए सोल्जर इज नेवर ऑफ डयूटी ने वीकेंड के दौरान 40 करोड़ रूपए की कमाई कर ली है। 

अक्षय कुमार की फिल्म होलीडे 06 जून को प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म को लगभग 3500 स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया था। फिल्म ने अपने पहले दिन 12.18 करोड़ रूपए की शानदार कमाई की थी। 

दूसरे दिन 12.30 करोड़ तथा तीसरे दिन 15.55 करोड़ रूपए की कमाई की है।

इस तरह यह फिल्म वीकेंड के दौरान 40 करोड़ रूपए की कमाई कर चुकी है। उल्लेखनीय है कि होली डे वर्ष 2012 में प्रदर्शित फिल्म थुपक्की की रिमेक है। 

विपुल शाह निर्मित और एआर मुर्गदास निर्देशित इस फिल्म में अक्षय कुमार के अलावा सोनाक्षी सिन्हा और गोविन्दा की भी मुख्य भूमिका निभाई है। -